खडूर साहिब लोकसभा सीट से खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह की जीत हुई. वो इस समय देशद्रोह के आरोप में असम की जेल में हैं. इसी तरह टैरर-फंडिंग के जुर्म में सजा काट रहे शेख अब्दुल राशिद ने भी उत्तरी कश्मीर में जीत हासिल की. जेल में चुनाव लड़ने की तो आजादी है. प्रत्याशी जीत भी गए. लेकिन वे शपथ कैसे लेंगे, और क्या कैद में रहते हुए सरकार चलाई जा सकती है?

लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे आ चुके. अब सरकार बनाने के लिए बैठकों का दौर चल रहा है.इस इलेक्शन ने कई मामलों में चौंकाया, जिसमें जेल में बैठे उम्मीदवारों का चुनाव लड़ना और जीतना भी शामिल है. खालिस्तान समर्थक नेता अमृतपाल सिंह के अलावा आतंकवादी गतिविधियों के चलते पांच सालों से तिहाड़ में बंद कश्मीरी नेता अब्दुल राशिद ने भी जीत पाई. जिसमें सवाल ही सवाल हैं.
डिब्रूगढ़ जेल में बंद खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह खडूर साहिब से चुनाव जीता, जबकि शेख अब्दुल राशिद ने बारामूला लोकसभा सीट से निर्दलीय रहते हुए ही नेशनल कॉन्फ्रेंस के कद्दावर नेता उमर अब्दुल्ला को हराया. दोनों ही आतंकवादी गतिविधियों के लिए अलग-अलग राज्यों से, अलग जेलों में बंद हैं. कानून को देखें तो अपराध काफी गंभीर हैं. लेकिन चूंकि संविधान जेल में बैठे लोगों को चुनाव लड़ने की राज्यों से, अलग जेलों में बंद हैं. कानून को देखें तो अपराध काफी गंभीर हैं. लेकिन चूंकि संविधान जेल में बैठे लोगों को चुनाव लड़ने की शुरुआत पहले सवाल से. रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट 1951 के अनुसार, 18 साल की उम्र का, सही दिमागी सेहत वाला कोई भी भारतीय चुनावी प्रोसेस का हिस्सा बन सकता है. जेल या लीगल कस्टडी में रहते हुए कैदी भी इस श्रेणी में आते हैं, जबकि आरोप साबित न हुए हों. इंजीनियर राशिद और अमृतपाल सिंह को इसलिए ही चुनाव लड़ने की छूट मिली. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के अनुसार, सभी सांसदों और विधायकों में से लगभग एक तिहाई आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं.